Tuesday 24 January 2012

एक दुआ...

यूँ तो कहने को है बहुत कुछ,
लेकिन समझ नहीं आता क्या कहूँ,
गुफ्तगू करने की है आरज़ू मुझे,
पूछना चाहती हूँ तुझसे सवाल कई,
हर एक चेहरे पे कई चेहरे हैं नकली,
क्यूँ सूरत नहीं दिखाई देती है आदम की असली,
क्यूँ फरेब से भरी पड़ी है दुनिया सारी
क्यूँ इंसानियत पे हैवानियत है भारी,
क्यूँ जज़्बात का समंदर थम सा गया है,
क्यूँ एहसास का पानी खुश्क हो गया है,
क्या यही वो  मखलूक है जिसे इतने प्यार से तुने बनायीं है,
अगर हाँ तो मेरे लिए ये पराई है,
या तो मुझे बना दे औरों जैसा,
या फिर हटा ले मेरी तकदीर से नाम जिंदगी का,
या रब कुछ तो जलवा दिखा अपना,
जो सुधार दे लोगों का रवैया,
खुदाया दुआओं में हो इतना असर मेरी,
बदल जाए लोगों का दिल अभी के अभी,
बदल जाए लोगों का दिल अभी के अभी......

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