Thursday 1 December 2016

चंद अशआर

तेरा चेहरा कि जैसे कोई किताब हो। 
मैं जिसे देखती भी रहूं पढ़ती भी रहूं।।

मुझसे ग़ज़ब की मुहब्बत है उनको। 
हज़ार इनकार सुनके भी इज़हार करते हैं।। 

ज़िंदगी की उम्मीद एक तुम्ही से है वगरना। 
ज़िंदगी एक कोरे काग़ज़ की मानिंद लगती है।।

रूबरू थे उनके फिर भी दिल की बात ना कह सके। 
मामला संगीन था करते भी तो हम क्या करते।।

जिस्म भी मेरा रूह भी मेरी दिल भी मेरा जान भी मेरी।
फिर भी ना जाने क्यों हर जा तेरी यादों का बसेरा है।।