Tuesday 24 January 2012

एक दुआ...

यूँ तो कहने को है बहुत कुछ,
लेकिन समझ नहीं आता क्या कहूँ,
गुफ्तगू करने की है आरज़ू मुझे,
पूछना चाहती हूँ तुझसे सवाल कई,
हर एक चेहरे पे कई चेहरे हैं नकली,
क्यूँ सूरत नहीं दिखाई देती है आदम की असली,
क्यूँ फरेब से भरी पड़ी है दुनिया सारी
क्यूँ इंसानियत पे हैवानियत है भारी,
क्यूँ जज़्बात का समंदर थम सा गया है,
क्यूँ एहसास का पानी खुश्क हो गया है,
क्या यही वो  मखलूक है जिसे इतने प्यार से तुने बनायीं है,
अगर हाँ तो मेरे लिए ये पराई है,
या तो मुझे बना दे औरों जैसा,
या फिर हटा ले मेरी तकदीर से नाम जिंदगी का,
या रब कुछ तो जलवा दिखा अपना,
जो सुधार दे लोगों का रवैया,
खुदाया दुआओं में हो इतना असर मेरी,
बदल जाए लोगों का दिल अभी के अभी,
बदल जाए लोगों का दिल अभी के अभी......

Friday 20 January 2012

सोच के बीच

ज़िन्दगी की राहें जुदा सी हो गयीं,
तू वहां रह गया मैं यहाँ खो गयी,
पलट के देख न सकी मैं तुझको,
और तू समझा मैं बेवफा हो गयी,
ऐतबार होता तो आते मेरे गरीबखाने में,
कुछ अपनी कहते 
कुछ मेरी सुनते करीने से,
पर तुझे ज़माने की कद्र है मेरी नहीं,
इस बात का एहसास मुझे है 
लेकिन तुझे नहीं,
मैं समझती हूँ रिश्ते निभाने के लिए 
होती है ज़रूरत सलीके की,
और तू सोचता है
रिश्ते निभाने ज़रूरत ही नहीं,
कितना फर्क है 
तेरी और मेरी सोच के बीच,
इसलिए तो शायद 
कोई ताल्लुक न रह गया हम दोनों के बीच,
फिर भी तू खुश है 
तो मेरे लिए इतना ही है काफी,
खुदा हर ख़ुशी से नवाजे तुझे
यही दुआ है मेरी...


Saturday 14 January 2012

रात का चाँद

रात का चाँद बहुत ही ख़ास लगा,

तू दूर था फिर भी आस-पास लगा,


तेरी मौजूदगी के अहसास से मिट गयीं मेरी तन्हाईयाँ,


इस बात का तुझे अहसास हो ऐसे मेरी किस्मत कहाँ,


रातभर तुझे मैं सोचती रही मुसलसल,


तू नींद के आगोश में करवटें बदलता रहा मुसलसल,


तेरी याद से मेरी आँखें हुई थी नम,


तेरे अहसास से खुशनुमा हुआ था मेरा मन,


तेरी फ़िक्र करती हूँ मैं हर कदम,


पर फर्क तुझे कहाँ पड़ता है मेरे हमदम,


मेरी सोच का दायरा तो बस तुझसे शुरू और तुझी पे ख़त्म,


लेकिन ये अहसास है मुझसे भी आगे तेरे लिए एक ज़माना है हमदम....






Tuesday 3 January 2012

कुछ बात करो


दूर सुनसान-से साहिल के क़रीब
एक जवाँ पेड़ के पास
उम्र के दर्द लिए वक़्त मटियाला दोशाला ओढ़े
बूढ़ा-सा पाम का इक पेड़, खड़ा है कब से
सैकड़ों सालों की तन्हाई के बद
झुक के कहता है जवाँ पेड़ से... ’यार!
तन्हाई है ! कुछ बात करो !’